सारांश
अधिक मास की रोचक पौराणिक कथा
हिंदू महीनों में हर तीसरे वर्ष में एक महीना अधिक होता है। अधिक मास को मलमास भी कहते है। इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। ये महिना किसी भी हिन्दू महिनी के साथ हो सकता है। जिसकी वजह से 12 की जगह 13 महीने हो जाते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार अधिक मास का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है।अधिक मास की खासियत यह है, कि
हिरण्यकश्यप को अमरता का वरदान
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम के असुर राजा ने अमर होने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की थी। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अमर होने के लिए भगवान ब्रह्मा जी की तपस्या की थी।
तपस्या पूरी होने के बाद उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा , कि उसकी मृत्यु किसी भी प्राणी, मनुष्य, पशु या देवताओं के द्वारा न हो, ना ही उसे कोई अंदर या बाहर, दिन या रात में मार सके। ना ही वह 12 महीने में किसी अस्त्र शस्त्र से मरे। ना उसकी मृत्यु पृथ्वी पर या आकाश में हो और ना ही उसे कोई युद्ध में मार सके। तब ब्रह्मा जी ने उसे उसकी तपस्या से खुश होकर यह वरदान दिया था।
लेकिन जब धीरे धीरे हिरण्यकश्यप के द्वारा लोगों पर अत्याचार बढ़ गए, तो भगवान विष्णु को लोगों को बचाने के लिए धरती पर अवतार लेना पड़ा. उन्होंने हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद के रूप में ही जन्म लिया
भगवान ने 12 महीनों को 13 महीने में बदलकर अधिक मास का निर्माण किया और नरसिंह के अवतार में शाम के समय चौखट पर अपने नाखूनों से असुर राज हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
धार्मिक मान्यता
इसी के बाद से हर महीने की चंद्र तिथि को एक देवता को समर्पित किया गया है। लेकिन अतिरिक्त मास का स्वामी बनने के लिए किसी भी देवता ने हामी नहीं भरी। ये देखकर ऋषि मुनि विचलित हो गए। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान से निवेदन किया कि, वह इस महीने का भार अपने ऊपर ले। ताकि इस महीने को भी पवित्र माना जाए।
भगवान श्री हरी विष्णु जी ने ऋषि-मुनियों के इस आवेदन को स्वीकार किया और इस तरह भगवन विष्णु को समर्पित यह मलमास या अधिक मास पुरुषोत्तम मास माना गया। ऐसी धार्मिक मान्यता भी है, कि
बिना किसी देवता के यह महीना मलमास कहने पर उसकी बड़ी निंदा होगी, इसी बात से दुखी होकर भगवान विष्णु ने इस महीने को अपना लिया।
इस प्रकार भगवान विष्णु के द्वारा अधिक मास को धर्म और कर्म के लिए और अधिक उपयोगी बना दिया गया। इस महीने में बाकी महीनों की तुलना में स्नान, पूजा-पाठ, दान करने से कई सौ गुना अधिक पुण्य और फल की प्राप्ति होती है।