सारांश
विभिन्न अमावस्याओं के नाम एवं उनका महत्व 12 Amavasya ka mahatva
वैशाख अमावस्या
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख महीना ही वह माह था। जिस महीने से त्रेता युग की शुरुआत हुई थी। यही कारण है कि वैशाख अमावस्या का हिंदू धर्म में महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में वैशाख महीने के अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन लोग सकारात्मक वृद्धि और समृद्धि प्राप्त करने के लिए उपवास रखते हैं। 12 अमावस्याओं के नाम और सावधानियां
ज्येष्ठ अमावस्या
ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। शनि जयंती पर भक्त भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और भगवान शनि का आशीर्वाद लेने के लिए शनि मंदिरों में जाते हैं। इस अमावस्या को ही वट सावित्री का व्रत भी रखा जाता है। विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन को उपवास रखा जाता है।
आषाढ़ अमावस्या
आषाढ़ अमावस्या को धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को दान करना और पितरों के लिए श्राद्ध शांति करना अच्छा माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है।
श्रावण अमावस्या
इस दिन श्रावणी अमावस्या और हरियाली अमावस्या दोनों ही साथ में मनाई जाती है। हरियाली अमावस्या भगवान शिव को समर्पित होता है। भक्त पूरी भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं और अच्छी बारिश और भरपूर फसल के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। महाराष्ट्र में श्रावण अमावस्या गटारी अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं दक्षिण भारत में इसे चुकल्ला अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन को वृक्ष रोपण करना भी शुभ माना जाता है।
भाद्रपद अमावस्या
भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस अमावस्या व्रत का महत्व बताया था।
राजस्थान में भाद्रपद अमावस्या को रानी सती की स्मृति में मनाया जाता है। झुंझुनू जिले में, रानी सती के सम्मान में एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है। जिसे समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा पूजा जाता है क्योंकि उसने अपने पति की चिता पर अपना बलिदान दिया था।
अश्विन अमावस्या
अश्विन अमावस्या को महालय अमावस्या और सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यह पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। आप दिन में कभी भी इस दिन को श्राद्ध कर सकते हैं। इसे सर्व पितृ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। सर्व पितृ अमावस्या पूर्णिमा, अमावस्या या चतुर्दशी को मरने वालों के श्राद्ध या तर्पण के लिए महत्वपूर्ण है।
कार्तिक अमावस्या
कार्तिक मास की अमावस्या हिंदू धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रोशनी का त्योहार – दिवाली भी इसी अमावस्या तिथि को पड़ती है। इस दिन भक्त लक्ष्मी माता और रिद्धि-सिद्धि के भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या
मार्गशीर्ष अमावस्या को अघान अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों की शांति के लिए दान करते हैं। साथ ही, कुछ लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
पौष अमावस्या
जब हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष के विशिष्ट महीने में अमावस्या मनाई जाती है, तो उस विशेष अमावस्या को पौष अमावस्या कहा जाता है। यह एक अशुभ दिन होता है। कारण नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां इस दिश अधिक मजबूत होती हैं।
माघ अमावस्या
माघ अमावस्या को मौनी अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है। अपने जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए इस दिन मौन व्रत रखना चाहिए। अगर चुप रहना संभव नहीं है। तो अपने चेहरे से कठोर शब्द ना बोलें।
फाल्गुन अमावस्या
लोग जीवन में सुख और शांति के लिए फाल्गुन अमावस्या का व्रत करते हैं। इसके साथ ही इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध भी करते हैं। यदि यह सोमवार, मंगलवार, गुरुवार या शनिवार के दिन पड़ता है; तो यह अधिक शुभ और फलदायी होता है।
चैत्र अमावस्या
चैत्र अमावस्या चैत्र मास के कृष्ण पक्ष को पड़ती है। व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष और शांति प्राप्त करने के लिए अमावस्या का व्रत रखता है।
महत्व
ये जानकारी आपको होनी चाहिए की अमावस्या तिथि हमारे पूर्वजों की पूजा को समर्पित है। पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह सबसे अच्छा दिन है। तांत्रिक पूजा और काल तीक्ष्ण दोष से संबंधित पूजा करने के लिए ये दिन बहुत अच्छे हैं। यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या का व्रत रखता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
अमावस्या के दौरान क्या नहीं करें?
शायद आप नहीं जानते की अमावस्या के दिन बहुत अशुभ होते हैं। इसलिए हमें इन तिथियों पर अपनी दैनिक गतिविधियों के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए। अन्यथा, यह हमारे जीवन पर बहुत सारे नकारात्मक प्रभाव डालता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं। अमावस्या तिथि को क्या नहीं करना चाहिए।
मांसाहारी भोजन से परहेज करें। बांसी खाना या पका हुआ भोजन ना लें। शराब से दूर रहें। श्राद्ध कर्म विधिपूर्वक करना चाहिए। कोई भी अनियमितता हमारे पूर्वजों के क्रोध का कारण बनती है। अमावस्या के दिन सोना या कोई भी आभूषण न खरीदें। इन दिनों में कोई भी नई गतिविधि या व्यवसाय शुरू न करें।