सारांश
भारत को दुनियां भर में त्योहारों का देश कहा जाता है। हर महीने कोई ना कोई त्यौहार होता है। जिसमें पशु पक्षियों से लेकर पहाड़ों, चांद, तारों तक की पूजा की जाती है। ऐसा ही एक त्यौहार है, गोवर्धन पूजा। जिसे दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है।
भारत के कुछ हिस्सों में गोवर्धन पूजा को अन्नकूट महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोगों जीवन में गोवर्धन पूजा का बहुत अधिक महत्व है।
गोवर्धन पूजा के द्वारा ही प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध भी प्रदर्शित होता है। गोवर्धन पूजा को लेकर बहुत सी लोक कथा और मान्यताएं हैं।
गोवर्धन पूजा के दिन क्या करे?
गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा की जाती है। हिंदू शास्त्रों में यह बताया गया है, कि गाय नदियों की तरह ही पवित्र होती है। जैसे नदियों में गंगा नदी का महत्व सबसे ऊंचा है, वैसे ही पशुओं में गाय का महत्व सबसे अधिक है। कुछ लोग गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी मानते हैं।
गाय माता का पूजन
यह भी माना जाता है, कि जिस तरह मां लक्ष्मी धन-धान्य की देवी है, ठीक उसी प्रकार गाय माता भी अपने दूध से शिशुओं का पालन करके स्वस्थ रखती हैं। गाय अपने दूध से सभी को जीवन प्रदान करते हैं।
इसके अलावा गायों को संपूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय भी माना गया है। गायों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही गोवर्धन की पूजा की जाती है। इस दिन गाय माता की विशेष रूप से पूजा होती है।
एक लोक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र भगवान के प्रकोप से बचने के लिए, एक पर्वत को 7 दिनों तक अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया था, तब सभी गोपिकाओं ने उसमें सुख पूर्वक 7 दिन बिताए थे।
इंद्र भगवान ने क्रोध सभी ब्रजवासियों पर मूसलाधार वर्षा की थी। सातवें दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से हटाकर वापस जमीन रखा और तभी से हर वर्ष गोवर्धन पूजा की जाती है। इसी को अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा की लोक प्रचलित कथा: भगवान श्रीकृष्ण
एक बार की बात है, वर्षा के देवता और देवताओं के राजा इंद्र को अपनी शक्तियों का अभिमान हो गया। वह अपने शक्तियों के अभिमान में इतने विलीन हो गए, कि उन्हें यह भी ज्ञात नहीं रहा, कि भगवान श्री हरि विष्णु ने कृष्ण के रूप में , उन्हे सबक सिखाने के लिए स्वयं धरती पर जन्म लिया है।
भगवान इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए उन्होंने एक लीला का आयोजन किया। एक दिन उन्होंने देखा कि ,
उनके गांव के सभी लोग अच्छा-अच्छा खाना बना रहे हैं। और किसी बड़ी पूजा की तैयारी में लगे हैं। उत्सुकता वश भगवान श्री कृष्ण ने बहुत भोलेपन के साथ, अपने माता यशोदा जी से प्रश्न किया, कि मैया आप लोग किसकी पूजा की तैयारी में इतनी जोर शोर से लगे हुए हैं।
श्री कृष्ण की बातों को सुनकर यशोदा मैया ने जवाब दिया, कि हम सभी वर्ष के देवता देवराज इंद्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।
इस पर कृष्ण भगवान ने दोबारा अपने माता से पूछा कि हम केवल इंद्र भगवान की ही पूजा क्यों करते हैं, तो उनकी माता ने उन्हें उत्तर दिया क्योंकि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न उत्पन्न होता है, और हमारी गायों को खाने के लिए चारा मिलता है।
साथ ही मनुष्य को खाने के लिए अनाज भी उत्पन्न होता है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि इस तरह तो हमें गोवर्धन पर्वत की भी पूजा करनी चाहिए। क्योंकि हमारी सारी गाय, वहीं चलने के लिए जाती हैं। और यदि उपयोगी दृष्टि से देखा जाए तो गोवर्धन पर्वत ही पूजनीय है।
इंद्र भगवान तो कभी दर्शन देते हैं, और कभी नहीं देते। यदि हम उनकी पूजा ना करें तो वह क्रोधित भी हो जाते हैं। अतः हमें ऐसे अहंकारी देवता को कदापि नहीं पूजन करना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण और इंद्र के बीच में गोवर्धन पर्वत की पूजा को लेकर युद्ध छिड़ गया। इंद्र ने गोवर्धन पर्वत की पूजा को अपना अपमान समझा और बृजवासियों पर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। मूसलाधार वर्षा से बाढ़ आने की संभावना बढ़ गई। जिससे सभी लोग घबरा गए। और भगवान श्री कृष्ण को बुरा भला कहने लगे।
उन्होंने कहा कि यह सब कुछ श्री कृष्ण के कहने से ही हुआ है। भगवान इंद्र हमसे नाराज हैं। तभी वह हमें इस तरह परेशानियां दे रहे हैं। तब भगवान श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाकर सभी को इकट्ठा किया और गोवर्धन पर्वत के पास ले गए। वहा जाकर पर्वत को एक उंगली पर उठा लिया। सभी बृजवासी अपने गाय और बछड़ों के समेत गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेने लगे। इंद्र कृष्ण भगवान की यह लीला देखकर और ज्यादा क्रोधित हो गए।
जिससे और तेज वर्षा होने लगी इंद्र को मनाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि वह पर्वत के ऊपर रहे और वर्षा की गति को नियंत्रित करते रहें। शेषनाग जी से प्रार्थना की कि आप मेढ़ बनाकर पानी को पर्वत की तरफ पानी से रोक दें। लगातार 7 दिनों तक मूसलाधार वर्षा करने के पश्चात, जब इंद्र भगवान को यह महसूस हुआ की बृजवासियों की रक्षा करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं है। अतः वह ब्रह्मा जी के पास दौड़े दौड़े गए और उन्हें सारी बात बता दी।
ब्रह्मा जी ने इंद्र की बातों को सुना और उन पर बहुत क्रोधित हुए। फिर उन्होंने भगवान विष्णु की लीला के बारे में उन्हें समझाया। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा कि जिस कृष्ण के आप बात कर रहे हैं। वह वास्तव में भगवान विष्णु है। ब्रह्मा जी से सच्चाई जानकर इंद्र भगवान बहुत लज्जित हुए और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। उन्होंने कहा कि मैं अहंकार वश आपको पहचान नहीं पाया। आप बहुत दयालु हैं।
इसीलिए मेरी गलतियों को क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण की पूजा की, और उन्हें भोग लगाया। तभी से इस पौराणिक घटना के बाद, से गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। साथ ही अपने पशुओं गाय बैलों को स्नान पश्चात, उन्हें अच्छे से तैयार करते हैं। उनके गले में नई रस्सी डालते हैं, और गुड और चावल मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है।
गोवर्धन पर्वत की पूजा विधि
गोवर्धन की पूजा करने के लिए दीपावली के, अगले दिन सुबह शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने की प्राचीन परंपरा है। इस दिन आप सुबह उठकर स्नान करें और पूजा के स्थान पर बैठ जाए। फिर आप अपने कुल के देवी देवताओं का ध्यान करें। और गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा से बनाएं। साथ ही इसमें लेते हुए पुरुष की आकृति भी बनाई जाती है।
प्रतीक रूप से गोवर्धन पर्वत पर आप फूल, पत्तियां, टहनियां, गाय की आकृतियां भी बना सकते हैं। इसके पश्चात उसे आकृति में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है। और नाभि की जगह एक कटोरी जैसा गड्ढा बनाया जाता है। जहां पर एक मिट्टी का दिया रखा जाता है। और फिर इसमें दूध दही, गंगा,जल, शहद और बताशे डालकर पूजा की जाती है। इसी प्रसाद को फिर परिवार के सदस्यों में बांट दिया जाता है।
भारत के कुछ अन्य हिस्सों में गोवर्धन पूजा के साथ गायों को स्नान करवा कर, उन्हें भी अच्छे से तैयार किया जाता है। इसके पश्चात उन्हें सिंदूर लगाकर फूलों की माला भी पहनी जाती है। और भली भांति पूजन किया जाता है। इसके बाद उनके सींग और शरीर पर घी लगाया जाता है। गाय की पूजा करने से मां लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न होती है, और घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं रहती।
इसके बाद फल मिठाई और गाने भी गोवर्धन पर्वत पर अर्पित किए जाते हैं। उसके अलावा एक कटोरी में दही डालकर उसे दूब घास की झरने से पूरे घर में छिड़कते हैं। फिर गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है। इस परिक्रमा को करते हुए एक व्यक्ति के हाथ में जल का लोटा होता है, और दूसरे व्यक्ति के हाथ में जौ होते हैं। जल वाला व्यक्ति जल की धार को गिरते हुए आगे चलता है, जबकि दूसरा व्यक्ति अन्य यानी जौ को पानी की धार के साथ गिरते हुए परिक्रमा को पूरी करता है। इस प्रकार गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।