सारांश
पार्वती पुत्र गणेश को ही विनायक के नाम से जाना जाता है। इतना नहीं उन्हें विघ्नहर्ता कहकर भी बुलाया जाता है क्योंकि ऐसा उनके भक्तगण मानते हैं कि गणपति बप्पा अपने भक्तों के सभी विघ्नों को हर लेते हैं।
साथ ही भक्तों के चेहरे पर खुशहाली लेकर भी आते हैं। इसी वजह से प्रतिवर्ष विनायक चतुर्थी को धूमधाम से मनाया जाता है।
वर्ष में एक बार जो विनायक चतुर्थी पड़ती है। उसके अतिरिक्त हर महीने 2-2 विनायक चतुर्थी भी पड़ती है। जिसे बहुत सारे लोग मनाते भी हैं। हर महीने जो विनायक चतुर्थी पड़ती है। वह पक्ष के हिसाब से पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष पर और दूसरा शुक्ल पक्ष पर पड़ता है।
आमतौर पर कृष्ण पक्ष पर पड़ने वाले चतुर्थी को संकोष्टि चतुर्थी और शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाले विनायक चतुर्थी को ही मनाया जाता है।
भगवान श्री गणेश जी की पूजा करने से क्या होगा?
हर पूजा-पाठ का अपना एक अलग महत्व होता है। ठीक उसी प्रकार से विनायक चतुर्थी की पूजा का भी अपना एक अलग महत्व है। जो लोग पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस पूजा विधि को संपूर्ण करते हैं। बाप्पा उनके मन की इच्छा को अवश्य ही पूर्ण करते हैं।
विघ्नहर्ता का अर्थ है सभी दुखों को दूर करने वाले भगवान। अतः इनकी कृपा से जीवन के सभी असंभव कार्य आसानी से पूरे हो जाते हैं। इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ऐसा माना जाता है।
विनायक चतुर्थी कथा
विनायक चतुर्थी व्रत कथा में गणेश भगवान के व्रत की कथा सुनाई जाती है। यह कथा हमें गणेश भगवान के महत्व और उनकी पूजा का तरीका सिखाती है।
एक समय की बात है, देवता और ऋषि-मुनियों के सभी भगवान शिव और विष्णु के आदेश के बावजूद विनायक भगवान को अपने बालगण से अलग रखा जाता था। उन्हें अपराधी माना जाता था और कोई भी पूजा-अर्चना में नहीं शामिल किया जाता था।
इससे विनायक भगवान बहुत दुखी हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा जी ने विनायक भगवान को समझाया कि उन्हें अपराधी क्यों माना जाता है और कैसे इसे दूर करें।
ब्रह्मा जी ने कहा कि एक दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तुम प्रथम पूजा करो, तो सभी देवता-देवी और ऋषि-मुनि तुम्हारी पूजा करेंगे। इससे तुम्हारा अपराध नष्ट होगा और तुम धन, सुख, समृद्धि और बुद्धि के स्वामी बन जाओगे।
विनायक चतुर्थी पौराणिक व्रत कथा
विनायक चतुर्थी व्रत कथा के अनुसार, बहुत पुरानी काल में एक गांव में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम कालिंदी था। कालिंदी एक ईमानदार और धार्मिक व्यक्ति था। उसकी धनवानता और समृद्धि का कारण था कि लोग उसे बड़ा आदमी मानते थे।
एक दिन, कालिंदी के घर में एक सन्यासी बाबा आए। वह सन्यासी बहुत ही संतुष्ट और तेजस्वी था। उसने कालिंदी के घर में अत्यंत शांतिपूर्ण और प्रशांतिपूर्वक वसन्त ऋतु का आगमन किया।
कालिंदी ने सन्यासी बाबा की सेवा की और उनका आदर्श और धार्मिक व्यवहार देखकर उनका आदर्श बनाने का निश्चय किया। सन्यासी बाबा ने कालिंदी को गणेश भगवान की पूजा करने की सलाह दी। कालिंदी ने बाबा की सलाह मानी और विनायक चतुर्थी का पालन किया।
विनायक चतुर्थी: सरल पूजा विधि
विनायक चतुर्थी पर सरल पूजा विधि निम्नलिखित रूप में हो सकती है:
1. विनायक पूजा के लिए सबसे पहले एक पवित्र स्थान तैयार करें, जैसे कि मंदिर या पूजा कक्ष।
2. पूजा के लिए आवश्यक सामग्री इकट्ठा करें, जिसमें श्रीफल (नारियल), सुपारी, दूर्वा, कुमकुम, अक्षता (चावल के दाने), गंध (चंदन), धूप, दीप, पुष्प, और पूजा के लिए अन्य आवश्यक सामग्री शामिल हो सकती हैं।
3. पूजा की शुरुआत के लिए विघ्नहर्ता श्री गणेश की मूर्ति को स्थानीय मान्यता के अनुसार स्थापित करें। उन्हें प्राण प्रतिष्ठान करें यानी प्राणप्रतिष्ठा मंत्रों का जाप करें।
4. अपने मन को शुद्ध करें और गणेश भगवान की आराधना के लिए मन्त्र जप करें। “ॐ गं गणपतये नमः” या “ॐ गणेशाय नमः” यह मन्त्र जप करने के लिए अनुशंसित हैं।
5. श्रद्धा और भक्ति के साथ गणेश भगवान के चरणों में पुष्प अर्पित करें।
6. गणेश भगवान को तिलक करें, कुमकुम और अक्षता चढ़ाएं