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सारांश
वट सावित्री व्रत पूजा विधि: प्रेम, पतिव्रता और अटूट विश्वास का संगम
वट सावित्री व्रत – यह नाम सुनते ही मन में एक अद्भुत प्रेम कहानी, अटूट पतिव्रता और असाधारण विश्वास की छवि उभर आती है।
वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत, जो जेठ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति के लंबे जीवन और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है।
वट सावित्री की पूजा कैसे की जाती है?
- व्रत के दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- पूजा का शुभ मुहूर्त जानने के लिए पंचांग देखें।
पूजा सामग्री:
- पीपल का पेड़ (वट वृक्ष)
- गंगाजल
- रोली
- चावल
- फूल
- फल
- दीपक
- धूप
- अक्षत
- सूखे मेवे
- मिठाई
वट सावित्री पूजा की विधि:
- पीपल के पेड़ की जड़ों में गंगाजल डालें।
- पेड़ की गोद में मिट्टी का एक टीला बनाएं।
- टीले पर सावित्री और सत्यवान की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें।
- पेड़ को रोली, चावल, फूल और अक्षत से अर्पित करें।
- दीपक और धूप जलाएं।
- व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
- सावित्री और सत्यवान की वीरता और प्रेम की भावना का स्मरण करें।
- अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करें।
- पूजा के बाद फल, मिठाई और सूखे मेवे का भोग लगाएं।
- दिन भर व्रत रखें और केवल फल और जल ग्रहण करें।
- शाम को कथा सुनने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
प्रेम और समर्पण की अनोखी कहानी:
- इस व्रत की कथा सावित्री और सत्यवान नामक दंपति की प्रेम कहानी से जुड़ी है।
- सावित्री, राजकुमारी द्युमत्सेना की पुत्री थीं, जो अपनी बुद्धि और सौंदर्य के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने सत्यवान नामक गरीब लेकिन धर्मात्मा राजकुमार से विवाह किया।
- विवाह के बाद, उन्हें यह भविष्यवाणी मिली कि सत्यवान को कुछ ही वर्षों में मृत्यु हो जाएगी।
- दुःखी सावित्री ने इस भविष्यवाणी को स्वीकार नहीं किया और अपने पति को बचाने का दृढ़ निश्चय किया।
- मृत्यु के दिन, सावित्री ने सत्यवान के साथ यमराज (मृत्यु के देवता) का पीछा किया।
- अपनी निष्ठा, प्रेम और अटूट विश्वास के बल पर सावित्री ने यमराज को सत्यवान की जान वापस दिला दी।
वट सावित्री व्रत का महत्व:
- पतिव्रता का प्रतीक:
यह व्रत पत्नी द्वारा अपने पति के प्रति अटूट प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।
- सुख-समृद्धि की कामना:
विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने पति के दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं।
- आत्मबल और दृढ़ संकल्प:
सावित्री की कहानी हमें आत्मबल, दृढ़ संकल्प और अटूट विश्वास की प्रेरणा देती है।
वट सावित्री व्रत के अनुष्ठान:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पीपल के पेड़ की पूजा करें और उसके चारों ओर धागा बांधें।
- सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें।
- पूरे दिन अन्न का त्याग करें और केवल फल और जल ग्रहण करें।
- शाम को कथा सुनने के बाद भोजन ग्रहण करें।
वट सावित्री व्रत से परे:
- यह व्रत सिर्फ पतिव्रता का प्रतीक होने से कहीं अधिक है।
- यह प्रेम, समर्पण, त्याग, आत्मबल और दृढ़ संकल्प जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को भी दर्शाता है।
- व्रत रखने वाली महिलाओं को नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा और सदाचार का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।
आज के समय में वट सावित्री व्रत:
- आज के समय में भी, वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
- यह व्रत न केवल पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक मूल्यों को भी बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष:
वट सावित्री व्रत प्रेम, पतिव्रता और अटूट विश्वास का प्रतीक है।
यह व्रत हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।