सारांश
निर्जला एकादशी, हिंदू धर्म में एक प्रमुख और पवित्र व्रत है, जिसे अत्यधिक श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जल तक का सेवन वर्जित होता है, जिससे यह अन्य एकादशी व्रतों की तुलना में अधिक कठिन माना जाता है।
इस व्रत को करने वाले भक्तों का विश्वास है कि इससे उन्हें सभी एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। आइए इस पावन व्रत की कथा और महत्व को विस्तार से जानें।
निर्जला एकादशी शब्द का अर्थ है “निर + जल” जो कि हिंदी में “बिना पानी के” का अर्थ होता है। इस एकादशी व्रत में व्रती अपने प्राणों का बलिदान देते हुए पानी नहीं पीते हैं। इसलिए, इसे “निर्जला” एकादशी कहते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत कब मनाया जाता है?
निर्जला एकादशी व्रत एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जो हिंदू धर्म में मनाया जाता है। इस एकादशी व्रत को ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाते हैं।
निर्जला एकादशी महत्व
निर्जला एकादशी, जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, बिना जल के रखा जाने वाला व्रत है। इसे ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
इस व्रत को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका प्रारंभ पांडवों में भीमसेन ने किया था।
- निर्जला एकादशी को करने के पीछे का महत्वपूर्ण कारण ये है ,कि इस दिन भक्त अपने सभी पापों से मुक्त होते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से समस्त भक्त दुःखों से भी मुक्त होते हैं।
- कुछ लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें वे पानी नहीं पीते हैं।
- इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि पानी की समस्या भारत में बहुत बड़ी है और इस व्रत से लोग जल संरक्षण के महत्व को भी समझते हैं।
- निर्जला एकादशी की कहानी में बताया जाता है कि एक बार भक्त भगवान विष्णु के मंदिर में पहुंचा और उनसे पूछा कि कौन सा एकादशी व्रत सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने उन्हें निर्जला एकादशी के व्रत का महत्व बताया।
- वह भक्त कोई और नहीं बल्कि स्वयं युधिष्ठिर थे। जिनके पूछने पर भगवान कृष्ण ने उन्हें निर्जला एकादशी के व्रत का महत्व बताया था ।
निर्जला एकादशी की एक और व्रत कथा
- पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों की माता कुंती के पुत्र भीमसेन को भोजन का अत्यधिक शौक था। वे किसी भी प्रकार से भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, लेकिन उनकी माता और भाई सभी एकादशी व्रत रखते थे।
- एक बार भीमसेन ने अपने गुरु वेदव्यास से पूछा कि क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे वे सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त कर सकें बिना सभी व्रतों को किए।
- गुरु वेदव्यास ने उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं, का व्रत रखने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी 24 एकादशी व्रतों का फल मिलता है।
- भीमसेन ने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए निर्जला एकादशी का व्रत रखा और उन्हें सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त हुआ।
व्रत की विधि
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए भक्तों को एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
इस दिन जल और अन्न का सेवन पूर्णतः वर्जित है।
दिनभर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप और उनकी कथाओं का श्रवण करना चाहिए।
अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करते हुए जल ग्रहण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
व्रत का फल
निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह व्रत करने से व्यक्ति को सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त होता है। इसके साथ ही, इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
उपसंहार
निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत न केवल भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि उन्हें आत्म-संयम और आत्म-नियंत्रण की दिशा में भी प्रेरित करता है।
इस व्रत की कथा और महत्व हमें यह सिखाते हैं, कि दृढ़ संकल्प और सच्ची श्रद्धा के साथ कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है। अगर आप भी इस व्रत को सच्चे मन से करते हैं, तो निश्चित रूप से आपको भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होगी।
निर्जला एकादशी के इस पावन अवसर पर भगवान विष्णु की आराधना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।