सारांश
चातुर्मास की शुरुआत कब होती है? आइए जानते हैं!
चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी के दिन से होती है, जो हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। चातुर्मास का यह विशेष समय सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास तक चलता है।
यह चार महीने का कालखंड धार्मिक और आध्यात्मिक साधनाओं का स्वर्णिम समय माना जाता है। इस अवधि में पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और धार्मिक अनुष्ठान करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर आप भी अपने जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार चाहते हैं, तो इस चातुर्मास में इन पवित्र कर्मों को जरूर अपनाएं।
चातुर्मास 2024: 17 जुलाई से शुरू, जानें नियम और पूजा के तरीके
चातुर्मास, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कालखंड है, जो आध्यात्मिक साधना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए समर्पित होता है। 2024 में चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से होगी। इस अवधि में चार महीने तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, और इस दौरान धार्मिक अनुशासन और व्रत-उपवास का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं चातुर्मास के नियम, पूजा विधि, और इसके महत्व के बारे में विस्तार से।
चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है चार महीने का कालखंड। इस अवधि में सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास आते हैं। यह समय योग, ध्यान, साधना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने के कारण, सभी प्रकार के शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
चातुर्मास के नियम
चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए:
- व्रत और उपवास: इस अवधि में व्रत और उपवास का पालन करना चाहिए। विशेषकर एकादशी व्रत का महत्व अधिक होता है।
- सात्विक भोजन: सात्विक भोजन का सेवन करें और मांसाहार, लहसुन, प्याज आदि से परहेज करें।
- ध्यान और साधना: नियमित रूप से ध्यान, साधना और योग करें।
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ: भगवद गीता, रामायण, महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
- दान और सेवा: गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करें और उन्हें दान दें।
चातुर्मास में किस प्रकार किसकी पूजा करनी चाहिए? पूजा विधि
चातुर्मास में पूजा विधि का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इसके तरीके:
- स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की पूजा: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं।
- तुलसी पूजा: तुलसी के पौधे की विशेष पूजा करें और उसे जल अर्पित करें।
- मंत्र जाप: ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
- आरती: भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
चातुर्मास में क्या नहीं खाना चाहिए?
चातुर्मास में भोजन को लेकर कुछ विशेष नियम और परहेज होते हैं। इस दौरान कुछ चीजें खाने से बचना चाहिए ताकि इस पवित्र कालखंड में धार्मिक अनुशासन और स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके। आइए जानते हैं चातुर्मास में क्या नहीं खाना चाहिए:
चातुर्मास में परहेज योग्य खाद्य पदार्थ
- मांसाहार: इस अवधि में किसी भी प्रकार के मांस, मछली और अंडे का सेवन वर्जित है।
- लहसुन और प्याज: लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तामसिक खाद्य पदार्थ माने जाते हैं।
- मसालेदार और तले हुए खाद्य पदार्थ: अत्यधिक मसालेदार और तले हुए खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
- अल्कोहल और नशीले पदार्थ: शराब, तम्बाकू, और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन पूरी तरह से वर्जित है।
- बासी और अधिक समय तक रखे गए खाद्य पदार्थ: ताजे और शुद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करें, बासी और अधिक समय तक रखे गए भोजन से बचें।
- अन्य तामसिक और राजसिक खाद्य पदार्थ: अधिक तैलीय, भारी, और तामसिक खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- बैंगन: चातुर्मास में बैंगन खाने से भी बचना चाहिए, इसे अशुभ माना जाता है।
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सात्विक आहार का महत्व
चातुर्मास में सात्विक आहार का सेवन अधिकतम लाभकारी होता है। इसमें फल, सब्जियाँ, दूध, दही, घी, और अनाज शामिल होते हैं। सात्विक आहार न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है।
चातुर्मास के दौरान इन खाद्य पदार्थों से परहेज करके और सात्विक आहार का पालन करके, आप अपनी धार्मिक साधना को सफल बना सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं। इस पवित्र कालखंड में संयम और अनुशासन का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें?
क्या करें:
- सकारात्मक विचार: सदैव सकारात्मक विचार रखें और दूसरों के साथ मधुर व्यवहार करें।
- पर्यावरण संरक्षण: पेड़-पौधे लगाएं और पर्यावरण की रक्षा करें।
- धार्मिक अनुष्ठान: नियमित रूप से पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन करें।
क्या न करें:
- विवाह और शुभ कार्य: चातुर्मास में विवाह, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।
- अनुचित आहार: मांसाहार, लहसुन, प्याज आदि का सेवन न करें।
- नशे से दूर रहें: शराब, धूम्रपान आदि का सेवन पूरी तरह से बंद कर दें।
चातुर्मास का समय हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह चार महीने का कालखंड भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय होता है। इस अवधि में धार्मिक और आध्यात्मिक साधनाओं का विशेष महत्व होता है। विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए चातुर्मास को उपयुक्त नहीं माना जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और इसके धार्मिक महत्व को विस्तार से:
क्या विवाह के लिए चातुर्मास अच्छा है?
नहीं ! आइए जाने …
चातुर्मास में विवाह वर्जित क्यों है?
- भगवान विष्णु की योगनिद्रा: चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं, और इस समय कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में भगवान विष्णु सभी कार्यों से विरक्त होकर विश्राम करते हैं।
- धार्मिक अनुशासन: चातुर्मास का समय आत्म-संयम, साधना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए समर्पित होता है। इस अवधि में धार्मिक साधनाओं पर अधिक ध्यान देने की सलाह दी जाती है।
- पारंपरिक मान्यता: हिन्दू परंपराओं में यह मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान किए गए मांगलिक कार्यों में स्थायित्व और समृद्धि नहीं होती। इसलिए विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को इस समय नहीं किया जाता है।
चातुर्मास के बाद विवाह
चातुर्मास की समाप्ति के बाद, विवाह जैसे शुभ कार्यों के लिए मार्गशीर्ष मास से शुभ मुहूर्त प्रारंभ हो जाते हैं। भगवान विष्णु की योगनिद्रा समाप्त होने पर देवोत्थान एकादशी के दिन से मांगलिक कार्यों के लिए पुनः शुभ समय आरंभ होता है।
विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए चातुर्मास का समय उचित नहीं माना जाता है। यह कालखंड धार्मिक साधनाओं और आत्म-संयम के लिए समर्पित होता है। इसलिए, चातुर्मास समाप्त होने के बाद ही विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों को करने की सलाह दी जाती है।
चातुर्मास में शुभ कार्य कर सकते है क्या? वर्जित कार्य
- गृह प्रवेश: इस अवधि में नए घर में प्रवेश भी वर्जित होता है।
- व्यापार का आरंभ: नए व्यापार या उद्योग का आरंभ भी नहीं करना चाहिए।
- मांगलिक अनुष्ठान: अन्य सभी प्रकार के मांगलिक अनुष्ठान, जैसे मुंडन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि भी चातुर्मास में नहीं किए जाते।
चातुर्मास का समय आत्म-संयम, साधना और धार्मिक अनुशासन का काल होता है। 2024 में 17 जुलाई से शुरू होने वाले इस पवित्र समय का लाभ उठाएं और अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर बनाएं। इन चार महीनों में भगवान विष्णु की पूजा और व्रत-उपवास का पालन कर आप असीम पुण्य के भागी बन सकते हैं।
आइए, इस चातुर्मास में हम सभी मिलकर आत्म-संयम और धार्मिकता की राह पर चलें और अपने जीवन को सफल बनाएं।